बारिशें
बारिशें आ गई।
नम घटायें जो छा गई।
मोर,पपीहे, कोयल गा रही।
हरी टहनियाँ लह लहा रही।।
ओह! ये मौसम कितना सुन्दर है।
ताजगी भरा आलम कितना मनमोहक है।।
पर मुझे क्या हुआ ?
जैसे मैं कहीं खो गया ?
क्या ये बचपन की गलियाँ है ?
या ये मेरी बीती बारिश की यादें है ?
क्या ये समा कुछ कहता है ?
मुझे ये बहुत अच्छा लगता है। ।
क्यों ये मुझे अच्छा लगता है।
कुछ बूँदे आ गिरी।
मेरी डायरी भी नम हो गई।
मेरे संवेग जैसे गीर रहे।
मेरी भावनायें जैसे आ मिली।।
ओह! कितना मनमोहक समा है।
कितना प्यारा ये जहान है।
क्यों ? मैं मन की सोंच रहा।
क्यों ? मैं कहीं और खो रहा।
चलो फिर से जीते है।
आज फिर भिगते है।।
- कविता रानी।
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