गरजते बादल
गरजते बादल
कहना आसान है,
कि डरता नहीं मैं।
पर जब धुप कहीं छुप जाती हैं।
हवायें रोद्र रूप ले लेती है।
और घटायें विकराल घनी काली बन ,
तन मेघ रूप आ जाती है।
और घने अंधेरे में सब शांत जब हो जाता है।
अचानक हवायें रूक जाती है।
सन्नाटा गहराता जाता है।
बादल उमड़ते बढ़ते है और,
तेज आवाज के साथ जब रोशनी होती है।
जैसे आसमान गिर गया हो ।
वो बिजली रूह कंपा देती है ।
और डरा देती है।
फिर थोडी देर तक सहम जाता हूँ ।
फिर गरजते बादलो के साथ वर्षा होती है।
तेज हवायें और बिजलिया कहती है।
डरा दिया ना।
और मैं कहता हूँ डरा हुआ सा ,
डर गया था मैं। डरता नहीं मैं पर,
गरजते बादलो से डर गया था मैं। ।
-Kavitarani1
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