शामें-जिंदगी तलाशता मैं
शामें-जिंदगी तलाशता मैं
शामें गुमनाम है मेरी,सुबह का कोई ठिकाना नहीं।
दिन ओझल से मेरे ,रातें करवटों में कहीं। ।
बेफिक्र भटकनें लगा हूँ मैं, तलाश कब तक करु तेरी।
आजाद फिरनें लगा हूँ मैं, पर यादों में पाता हूँ रुह तेरी ।।
रातें शरद चाँदनी भरी, चाँद खोया रहता कहीं।
बसंत की ऋतु चली,महक रुकसत है कहीं।
अंदाज बदलने लगा हूँ मैं, इंतजार कब तक करे जिंदगी।
एकांत जीने लगा हूँ मैं, अब दिखती नहीं बंदगी।।2।।
बातें बैमेल है मेरी, सार का कोई अंश नहीं।
मधुरता खोई है कहीं, रस सोया है कहीं। ।
बनावटी बनने लगा हूँ मैं, आस करुँ कब तक तेरी।
सब से कहने लगा हूँ मैं, मन में रखूँ कब तक मेरी।।3।।
वादे अजन्में हैं मेरे, कसमें अभी तक चखी नहीं।
रिश्ते अधूरे हैं मेरे, दोस्ती अटूट मिली नहीं। ।
पहचान रखने लगा हूँ मैं, गहराई नापनी सिखी नहीं।
मैल- जोल बढ़ाने लगा हूँ मैं, जीवन का कोई भरोसा नहीं।
यादें धुंधली हैं मेरी, आज मेरा मुझे भाता नहीं।
तलाश मुझे रहती तेरी, पूँछूँ सबसे क्या कहीं सुरत है तेरी।।
बेशर्म कहने लगा हूँ खुद मैं ,आखिर तलाश कब तक करुँ तेरी।
अब रुकने लगा हूँ मैं, उम्मीदों को कोई आस नहीं। ।5।।
शामें गुमनाम है मेरी, तलाश अधूरी है मेरी।
दिन ओझल है मेरे, जिंदगी बस कट रही।।
कवितारानी 1
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