बादल बिन बरसे लौट गये
बादल बिन बरसे लौट गये
इस संन्धा की वेला को ,
आसमान बादलों से भरा हुआ ।
गये थे जो कहीं बरसने को,
ये बादल वापस क्यों लौट रहें।
जिन्हें बरसना था हर सावन को,
वो यूँ ही भरे क्यों लौट रहें।
लगता है यें पानी कम लाये थे,
इन्हें धरा ने लौटा दिया।
या इन्हें आदेश मिला है जाने का।
किसी और जगहा बरसने का।
या ये बिन मौसम थें आ गये,
इसीलिए लौट गये।
ये बादल बिन बरसे ही लौट गये ।
कुछ छींटे गिरे थे मुझ पर,
पर भीगा पुरा ये ना पाये।
मन में तो आने लगा था मेरे,
पर ये मुझे गीला कर ना पाये।
आये थे उल्लास लिये, चुपके से,
चुपके से ही जा रहे।
ढलते दिन के साथ जो आसमान देखा,
देखा ,बादल बिन बरसे लौट गये। ।
कवितारानी1 ।।
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