शौक करुँ या ना करुँ
शौक करुँ या ना करुँ
जो धड़का ना इस धरा पर कहीं,
जो बना ना मानव रुप कहीं,
जो आया ना बन खुशी,
जो ढल पाया ना जीवन में कहीं।
उसके जाने पर हैं भाव कई।
उसके बिगड़न पर हैं दुःख कहीं ।
पर आया हैैं मन में भाव यहीं।
शौक करुँ या करुँ नहीं।
वो कहीं जो था अशं बना।
लेकर आ रहा था खुशियों का अशं बना।
वो था तो हमसे ही अब तक बना।
ना जान बनी पर था तो वो बना।
जो बन ना सका पुरा तो दोष उसका क्या।
जो बन ना सका इंसान तो दोष उसका क्या।
जो दे ना सके आशीर्वाद तो दोष हमारा क्या।
गया वो रह अधुरा,
बना ना वो रहा अधुरा,
अब इसका शौक करुँ या ना।।
Kavitarani1
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