राम भरोसे
राम भरोसे
अंधरे में रोशनी ही ढूंढता रहा हूँ।
चमकता रहा खुद ही फिर भी किरणों को खोजता रहा हूँ।
भौर में भी ऊंघता रहा हूँ।
दोपहर में भी ठंडाता रहा हूँ।
समझ ना पाया भाग्य को अपने,
कैसे में ऐसा बना रहा हूँ। ।
हर बार चरम पर आकर जीत पाया हूँ।
किनारे बहुत देख ,हाशिये से टकराया हूँ।
जो चाहा मिला जरुर ये कहता हूँ मैं।
पर जो मिला वो अंतिम दर्द के बाद पाया हूँ। ।
हाँ!शायद मेरे रब ने सुना होगा ।
हाँ उन्होने परीक्षण में मुझे चुना होगा।
अंतिम श्वांस तक कितनी कोशिश होगी।
वो देखना चाहे होगे तभी आज़माया होगा।।
मैं जलता दिया रहा हूँ।
रोशन करता सबको जलता रहा हूँ।
जानता भी हूँ अंधेरा मेरे तले है मुझमें है।
और मैं खुद रोशनी का सताया रहा हूँ। ।
सब भाग्य भरोसे है।
सब राम भरोसे है।
बस यही आस रही है।
बस यही बात रही है। ।
Kavitarani1
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