मैं पथिक अडिग / main pathik adig
मैं पथिक अडिग बढता- वीडियो देखे
कैसे एक पथिक अपना होंसला खुद बन कर आगे बढ़ता है और अपने लक्ष्य को हासिल करता है। यहाँ कवि अपने आप को एक लक्ष्य पर केन्द्रित पथिक बता रहा है।
मैं पथिक अडिग
मैं पथिक अडिग बढता हूँ ।।
रोज नई बाधाओं से लङता हूँ ।।
कभी बादलों से उलझता हूँ ।
कभी हवाओं से उलझता हूँ ।
कभी राह पर रोड़े पाता हूँ ।
कभी धरातल खोया पाता हूँ ।
मैं पथिक अडिग बढता हूँ ।।
कभी राहगीर नये अपनाता हूँ ।
कभी विचलित हो उन्हे भगाता हूँ ।
कभी अनायास लोग भटकाते हैं ।
मैं भटकता और फिर राह पर आ जाता हूँ ।
मैं पथिक अडिग चलता हूँ।।
मंजिल मेरी ऊँची हैं ।
राहें मेरी मुश्किल है ।
तन का बोझ समझता हूँ ।
मन का मोज समझता हूँ ।
हिम्मत बनाये रखता हूँ ।
मैं लक्ष्य पर नजर रखता हूँ ।
मैं पथिक अडिग बढता हूँ ।।
टोकने वाले आने है तो आयेंगे ।
पर रोकने वाले रोक ना पायेंगे ।
पथ कठोर और दुर्गम कर जायेंगे ।
पर रोक मुझे ना पायेंगे ।
क्योंकि मैं मन मौजी हूँ।
मैं पथिक लक्ष्य पर अडिग हूँ ।
मैं पथ पर अडिग बढ़ता हूँ ।।
Kavitarani1
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