आया नी सपना सुहाग | Aaya ni sapna suhag
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आया नी सपना सुहाग
दिन तीन कट ग्या, शामां बीत गी।
गयी है राम दुलार, हिवड़े ने जागी नी या प्यास।
आस लगी है, रास जगी है।
राहाँ तकू दिन रात, बैरी आयी नी म्हार पास।
आया दरद, लोग गरज, गरजे नी हिवङे री आग।
आया नी सपना सुहाग।।
मुखङा देखूँ, देखूँ लोगां नी बात।
आयी नी मन में आस, पिया की जागी नी प्यास।
ना आया कोई बैरी बन उजास, पास आया कोई खास।
दिन मैं सोई, रात सोई, रोई बनी खुद की नाश।
कि आया नी सपना सुहाग।।
लोग पुँछे, लुगायाँ सुझे, ढुँढ की खास।
बैठी कन्या, बन सुकन्या, रह गई लास।
आयो नी बैरी पास, कोई सामने नी आया खास।
आया नी सपना सुहाग।।
महिना बीता, साल रीता।
सुबह सुनी, रात धुनी।
कहाँ गाऊँ, गुन वो राज।
मधुर है जो पिया बोल खास।
आया नी सपना सुहाग।
कभी आया नी सपना सुहाग।।
- kavitarani1
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