बसंत है | Basant hai | spring time
बसंत है
था सावन झूम रहा,
अवारा बादल आकाश में था धूम रहा ।
मन बावरा तब झूम रहा,
हरियाली की चादर ओढ़ झूम रहा ।।
फिर शीतलता छाई,
कड़ाके की ढंड आयी ।
ठिठुरन से तब कांप गये,
लोगो को हम भाप गये ।।
जैसे मौसम थे बदलते आये,
नयी हवायें संग लाये ।
घटायें जैसे थी बदलती रहती थी,
वैसे लोग बदलते आये।।
अबकी बार बसंत आया,
लग रहा जीवन मुस्कुराया ।
ये मौसम हमेशा से भाया,
मन को इसने ललचाया।।
तरस अब रही नही,
तरस रहा सावन कहीं।
कब मौसम साफ होगा,
जीवन खुशमिज़ाज होगा।।
अभी बस दस्तक है,
सर्दी की ठिठुरन है ।
बसंत की बस आहट है,
पतझड़ की सुगबुखाहट है।।
मन में भी चाहत है,
राह है मन है।
कहीं आता दिख रहा जो ये,
लगता मेरा बसंत है।।
हाँ मौसम सारे मैंने देख लिये,
चेहरे बदलते देख लिये।
रंग बदलते देख लिये,
लोगो के ढंग बदलते देख लिये।।
मैंने अपने जीवन के कई मौसम,
अब तक देख लिये।
अब फिर बसंत की बारी है,
अब बसंत की तैयारी है ।।
अब लग रहा दुनिया
सिमटने वाली है।
अब बसंत है,
कहीं कोई चाहने वाली है।।
Kavitarani1
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