हारा नहीं मैं | hara nhi main
हारा नहीं मैं
ये दुनिया अब जाकर मुझे वश में कर गई।
कुछ महिनें हुए की जैसे जिंदगी तर गई ।
जो ढुब रहा था तन्हाई में वो अब अकेला नहीं।
खुशियाँ है आखों में पर सपने गुम कहीं।।
हारा नहीं मैं, ना हिम्मत खोया हूँ।
बैठ अकेले मैं बस सोंच रहा हूँ ।
क्यों बिन मंजिल पाये सो रहा हूँ।
हूँ व्यस्त बहुत लग रहा है ।।
अगस्त से नवम्बर सब व्यर्थ रहा है।
पर अब फिर से जिद लानी है ।
जो बने बाधायें उनसे दूरी बनानी है।
जीना है सपना पूरा करके ही रहना है ।।
हारा नहीं मैं ना हारूगाँ अभी मैं।
मंजिल पाने तक जीना मुझे है ।
एकांत में रहना मुझे हैं ।
लक्ष्य तक जीना हैं मुझे।।
Kavitarani1
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