लक्ष्मी | Laxmi



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 लक्ष्मी 


सरल, सहज, सरोज समेट नमी  ।

निर्मल, समझ भर, कम करती गमी ।

हम ही सार संभाल कहती कम ही ।

भर जीवन रस वो हसती हरदम ही ।

कहता जग रमा कहता मैं वो है लक्ष्मी।।


है साथ संगीनी सी फिर क्या रही कमी ।

धन वैभव उसके साथ फिर कहाँ गमी ।

सुख संपदा की कहलाती वो खुद देवी ।

जग ढुंढे जगह-जगह उसे वो मेरे घर में ही ।

कहे जग कमला उसे कहता मैं वो है लक्ष्मी।।


धरा धन्य-धन्य जीवन जो वो अर्धांगिनी।

मन - मंगल, अंग आनंद जो वो गृह स्वामीनी ।

तन-तन्मय, तर जीवन जो वो जीवन। 

धन्य देवी-देव जो की ये बन्धिनी ।

कहता जग दामिनी उसे कहता मैं हूँ लक्ष्मी।।


मधुर वचनी, मधुर रसनी, मधुर मालिनी ।

सुकुमारी, सुन्दरी, सुभासिनी, कामिनी । 

विद्याधारीणी, सरल स्वाभाविनी, सहज कर्मीणी ।

सुबोधीनी, सुगामीनी, सरला, कमाला, मंगल कामिनी।

कहते लोग देवी कमलवासिनी कहता मैं वो है लक्ष्मी।।


Kavitarani1 

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