मतलबी | Matalabi | selfish


Matalabi - kavita dekhe


 मतलबी 


बड़ा अच्छा सबब सिखाया,

बड़ा अच्छा खुद को बताया ।

कह सकूं अपने किस्सों में, 

बड़ा काबिल खुद को बनाया ।।


सब कहे शब्द लग रहे लबी अब , 

सब भाव कही अभाव में खोये हैं ।

सामने फिर निशब्द है अब,

एक ओर मतलबी से होये है ।।


ना अचरज सुन कर,

ना समझकर फितरत बुरा लग रहा ।

आजमाईशे अधुरी रखी,

तो बदला मिजाज मतलबी लग रहा ।।


खुब देख ऐसे चेहरे बेनकाब हो, 

कोई नया खैल नहीं। 

अपनी धुन में रहो खाब में, 

हमें अब कोई मतलब नहीं। ।


बड़ा मज़ा आया तमाशे देख ही,

बड़ा अलग लगा खैल ही ।

असल जिंदगी का पता है,

आज भी है मतलबी ही ।।


Kavitarani1 

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