विरहणी तेरी | Virahni Teri
विहरणी तेरी
मैं विरहणी तेरी, याद को तरसूँ ।
तक -तक राह मैं, बिन बादल बरसूँ ।
बिन बादल बरसूँ, मैं विरहणी याद को तरसूँ।
मैं विरहणी याद को तरसूँ।।
लूट-लूट जीवन तरसूँ, मैं बरखा बिन बरसूँ।
सुध-नहीं, सुधरती नहीं, सुगंध गयी,
गयी खुशबू, मैं विरह ताप, जल - जल झुलसुँ।
दूर तुझसे रह, मैं विरहणी झुलसुँ ।।
मैं ताप बन -बन हवा, दर-दर भटकूँ ।
मिले ठोह तेरी साँस का, साँस बन मन भरदूँ।
मैं जन-जन, जग जाऊँ, जाऊँ हर जगह,
पाऊँ ना मन वैसा तेरा, जैसा स्वाद था तुझमें,
मिला कोई इस जग में, रग-रग में बुँद बन सिरसुँ ।
मैं विरहणी तेरी, याद को तरसूँ।
मैं विहरणी तेरी, याद में तरसूँ।।
भूल गया चेहरा तेरा, जग है मतलब का घड़ा,
भरा मन तेरी एक -एक तस्वीर से,
मैं बदं आँख नयन तरसुँ।
बैठ एकात्त शांत कर मन, खुद ही तरसुँ।
मैं विरहणी तेरी, याद को तरसूँ।
मैं तेरी याद को तरसूँ।।
Kavitarani1
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