आज फिर.. Aaj Fir



आज फिर- विडिओ देखे

आज फिर...


बैठा हूँ अकेला यूँ ही ।

शांत करने को मन को ही ।।


ढ़लता है सूरज एक ओर को ।

उमढ़ते है बादल दुसरी ओर को ।

में निहार रहा क्षितित को ही ।

सोंच रहा चित्त हो शांत यही ।

आज फिर बैठा हूँ अकेला यूँ ही।।


आजकल वो बचपन की गलियाँ याद आने लगी ।

मेरा घर आँगन और सहेलियाँ याद आने लगी ।

कही उलझा रहा मन अकेला में जो ।

आज वो अनसुलझी पहेलियाँ याद आने लगी ।।


मैं बैठा था अकेला आज यूँ ही । 

शांत करने को मन को ही ।

और अशांति मन की खाने लगी ।

आज फिर पुरानी बाते याद आने लगी ।।


फिर घूम आया मैं यौवन को ।

थे जो सारे झमेले मंडराने लगे वो ।

थी परेशानियाँ और बेबस था जो । 

आज, उलझा हूँ और हूँ बस में यो ।।


पर सोच रहा जमाने की और अपनों की ।

कहीं रूढ़ ना जाये कोई चलती रही यहीं । 

क्यों उलझा रहता जब अपने हाथ कुछ नहीं । 

बैठा हूँ अशांत मन को । 

बैठा हूँ अकेला ही ।।


Kavitarani1 


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