बकवास लोग | Bakvas log
बकवास लोग
ये आलाप नहीं, सत्य है ।
मेरे भुगते हुए कृत्य है ।
मैं ऐसे में ही रहते आया हूँ ।
मैं भाग्य ऐसा ही लिखाया हूँ ।।
बात ये मेरे साथ की ।
मूर्खों की, या हालात की ।
मेरे साथ वालों की ये गाथा है ।
उनकी बुराई के सिवाय कुछ नहीं आता है ।।
नर की ही जो बात करूँ ।
सारे नरभक्षी है लगते है ।
नारियों में राक्षसी बसी, लगती है ।
सारी नालियाँ है, बुराईयां इनमें फसी हैं ।।
हर वक्त बकवास है करते रहते ।
हर बात में गंदगी भरते रहते ।
एक चालाक, एक धुर्त, एक जोकर है ।
तो एक लोमड़ी, एक सियार, एक नेवला है ।।
ढींगे बड़ी-बड़ी हांकते रहते हैं ।
बात स्वार्थ की करते रहते हैं ।
दुसरो के मन को ढंसते हैं ।
साफ छवि खुद को कहते है ।।
मैं अकेला इनमें खुद को पाता हूँ ।
कभी हॅसता हूँ कभी सुनाता हूॅ ।
मुझे इनमें से कोई नहीं भाया है ।
बस बकवास लोग यही कह मन पाया है ।।
Kavitarani1
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