भौर भये | Bhor bhaye | morning
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एक गंभीर व्यक्तित्व को हमेशा अपने कल की चिंता होती है, वो हमेशा अपने कल को सुन्दर, निश्चिंत और आरामदायक बनाने के बारे में सोंचता है। यहाँ भी पथिक अपने कल की चिंता सुबह से ही लिए बैठा है।
भौर भये
भौर भये दिन पनघट बिते ,
मुझे कल की चिंता सताये है ।
आज की मुझको फिक्र रही ना ,
मधुर धुन सुनने को मन तरसाये है ।
मिल गया सुख, दुख बिते ,
समझ परे ये निंदिया कौन चुराये है ।
साथी, सुखी सब मैल सुख है ,
दुःख, अहम या सपना खाये ।
रास नहीं, कुछ खास नहीं ,
पास है सब, फिर क्यों मन घबराये है ।
मान कहे, सम्मान कहे, राज मुझे भाये ,
आये कई, भटकाये कई, फिर क्या मन चाहे है ।
बित रहे दिन, महीने साल ये ,
बैर खुद से क्यों मन करता जाये ।
आन रखो भान मेरा, भान होवे कुछ बिगड़े है ,
रित्ता आया, रिक्त हुआ, क्या मन चाहे है ?
भौर भये मन चिढ़े शाम को बिता पाये है ,
कटती जा रही जीवन लीला उलझन मन बनाये है ।
भौर भये दिन पनघट बिते ।
मुझे कल की चिंता सताये है ।।
Kavitarani1
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