भोर भये | Bhor bhaye | morning
![]() |
भोर भये
भोर भये दिन पनघट बिते ,
मुझे कल की चिंता सताये है ।
आज की मुझको फिक्र रही ना ,
मधुर धुन सुनने को मन तरसाये है ।
मिल गया सुख, दुख बिते ,
समझ परे ये निंदिया कौन चुराये है ।
साथी, सुखी सब मैल सुख है ,
दुःख, अहम या सपना खाये ।
रास नहीं, कुछ खास नहीं ,
पास है सब, फिर क्यों मन घबराये है ।
मान कहे, सम्मान कहे, राज मुझे भाये ,
आये कई, भटकाये कई, फिर क्या मन चाहे है ।
बित रहे दिन, महीने साल ये ,
बैर खुद से क्यों मन करता जाये ।
आन रखो भान मेरा, भान होवे कुछ बिगड़े है ,
रित्ता आया, रिक्त हुआ, क्या मन चाहे है ?
भोर भये मन चिढ़े शाम को बिता पाये है ,
कटती जा रही जीवन लीला उलझन मन बनाये है ।
भोर भये दिन पनघट बिते ।
मुझे कल की चिंता सताये है ।।
Kavitarani1
160
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें