जाती उम्र / Jati umr



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 जाती उम्र 


बीत गये दिन अल्हड़, दुपहर बाकि है ।

साँझ की फिक्र सताती, रात डराती है ।

ऊझली किरण पूरब, पश्चिम को जाती है ।

चढ़ती दुपहर धूप, दिन बताती है ।।


चाँदनी की चौखट, तारे गिनाती है ।

भौर की सुध खोई, रात जगाती है ।

अल्हड़ जवानी खाती, उम्र कटती जाती है ।

लिखती कहानी कोरी, कलम घटती जाती है ।।


भौर का तारा आता, राह दिखाता जाता ।

जाता अँधेरा कहीं, कुछ समझ ना आता ।

मृगतृष्णा में खोया, कृष्ण अकेला कोई ।

समय की बेला में, अंखियाँ जो रोई ।।


बीत गया अँगना, खैल पुराने बीते ।

गाँव - चौखट बदली, मन के सब रीते ।

रीत पुरानी बदली, मन भी बदला है ।

तन का प्यासा सावन, बरखा पे अटका है ।।


महक सुहानी बगीया, दुर कहीं है ।

खींच रही है खुशब, मन कहीं है ।

साँझ का मारा, रात से डरता है  ।

मन बावरा अकेला, भौर से चिढ़ता है ।।


कट गया बचपन, यौवन बाकि है ।

उम्र की चिंता खाती, जरा डराती है ।

 जौश जवानी आती, कभी जाती है ।

ऊजला रूप लाती, कभी चिढ़ाती ।।


आशाएँ जगाती - बढ़ती, मिटती जाती है ।

नई उम्मीद लेके, जिन्दगी कटती जाती है ।।


Kavitarani1 

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