जिन्दा लाश हूँ मैं | jinda Lash
जिन्दा लाश हूँ मैं
एक लाश सा जिन्दा हूँ ।
लोग कहते मूर्दा तू ।
कैसे कहूँ जिन्दगी कि,
तुझसे शर्मिन्दा हूँ मैं ।
जो अनमोल थे जज्बात,
यूँ ही लूटा आया हूँ ।
अपने ही कातिल को याद करता हूँ ।
कैसा परिन्दा हूँ मैं ।
साँस चल रही है मेरी ।
पानी पी रहा हूँ ।
सब कुछ भूलकर भी ,
जैसे मूर्दा हूँ मैं ।
वो विश्वास का खुन हुआ ।
वो प्रेम मर चुका ।
बस अहसास बाकि है ।
यादों में दफ्न कई राज है ।
जो मार कर गया वो आजाद है ।
कैसे इंसान हूँ मैं ।
अपने कातिल के साथ हूँ मैं ।
बस बित गये हादसे को ।
कुछ भूला नहीं हूँ मैं ।
बस एक लाश सा जिन्दा हूँ मैं ।
अपने कातिल के पास हूँ मैं ।
Kavitarani1
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