किसे कहूँ | kise kahun
किसे कहूँ
किसे कहूँ किससे छुपाऊँ।
अपनी बातों को कैसे बिछाऊँ।
रख- रख मन पर मन हुआ भारी।
पास नहीं कोई ऐसा यार ना कोई ऐसी यारी।
चाहिए मुझे एक प्यारी मेरी दुलारी।
खोज-खोज जिसे मेरी हिम्मत गई मारी।
है कोई कहीं जो आके कह सके।
साथ मेरे रहे और मुझे समझ सके।।
पहली बात तो मुझे इन झमेलों में नहीं पङना।
वो अकेले में मेरी सांसो का हो जाता थमना।
चाहूँ मैं जमना और दुनिया में रमना।
कम ना आंकता मैं खुद को किसी से।
कह दे कोई तो तोङ दूँ मैं नहीं कम हाँ।।
पर रह- रह यादों में कोई आ जाती है।
ना चाहूँ फिर भी विचारों पर छा जाती है।
मेरी रूह गाये ना गाये पर काया बुलाती है।।
आती है रह-रह मुझे याद कोई जो छुपी जाती है।
उसका बनना चाहूँ और जीना चाहूँ साथ मैं।
पर जाने क्यूँ कह ना पाता और किसे कहूँ।
किसे कहूँ किसे छुपाऊँ।
उलझन में उलझा जाता हूँ।
बैठ अकेले कभी सुनता हूँ।
कभी खुद के गाने बनाता हूँ।
मैं टाइम पास करता जाता हूँ।
किसे कहूँ।।
- kavitarani1
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