कोई बने ढोर | koi bane dor
हमें अपने लक्ष्य स्वयं को प्राप्त करने हैं, और अपने सपने को पाने के लिए कई बार हम अकेले काफी नहीं होते हैं। हमें अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए कई बार सहारे की आवश्यकता होती है। ऐसे ही सहारे की तलाश को बताती हमारी ये कविता कोई ढोर बने।
कोई बने ढोर
कोई बने डोर मेरी, मैं पतंग बन उड़ जाऊँगा ।
दूर गगन तक जाके, मैं हवा पर लहराऊगाँ ।
हवा का रूख का पता लगाके, मैं सबसे आगे जाऊगाँ ।
जो डील देगा कोई, मैं सबसे जीत जाऊगाँ ।
कोई बने डोर मेरी, मैं सबसे लड़ जाऊगाँ ।
नई ऊँचाई छुकर, मैं सबको काट गिराऊगाँ ।
जो थामें रखे मेरी सांसे, मैं उड़ता ही जाऊगाँ।
सब लोग देखे मुझको, मैं ढौर तेरी गाऊगाँ ।
अपने जीवन का नाम करके, उड़ाने वाले को दोहराऊगाँ ।
कोई मिले उड़ाने वाला, मैं दूर तक उड़ जाऊगाँ ।
बिना थके दूर गगन जाके, अपना परचम लहराऊगाँ ।
कोई बने ढोर मेरी, साहस से उड़ता जाऊगाँ ।
हवा को चीरते हुए मैं, आसमान पर लहराऊगाँ ।
कोई काटे ना डोर मेरी, मजबुत बन उड़ता जाऊगाँ ।
आसमान का परिंदा निर्जीव, मैं आसमान से गिर जाऊगाँ ।
कोई छोड़े ना डोर मेरी, मैं तब तक उड़ता जाऊगाँ ।
खिचें जो ढोर मेरी, तो ही निचे आऊगाँ ।।
कोई बने डोर मेरी, मैं आसमान पर जाऊगाँ ।
खुली पतंग बन, मैं आसमान पर छाऊगाँ ।।
Kavitarani1
11

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें