मैं अकेला | main akela
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मैं अकेला
रात काली डराती हैं, नींद प्यारी बुलाती है ।
बुलातें है सपनें, औझल नींद कराते हैं ।
एकान्त मन बैठा, लम्हें पुराने कराहते हैं ।
रोना मन अब भूल गया है ।
यादों में अभी सपनें जमा हैं ।
सपनों की सेज सुहानी है, यादों में कांटे पुरानें हैं ।
भूल कर सब बस मन सपनें पाना चाहे ये ।
समझाऊँ कैसे मैं, डगर वो बड़ी मुश्किल है ।
खोना तन का चैन चाहूँ ना ।
बातों में अपने रह पाऊँ ना ।
अँधेरी है डगर अब भी, अब भी यादों का बिछोना है ।
और मंजिल कहे मुझे अभी नहीं सोना है ।
अधूरी नींद, अधूरा हर सफर रहता है ।
मन के कोनों में कल कहता है ।
तन पर समय का पहरा रहता है ।
दिन धूप - धूल उड़ती रहती है, जल - जल शाम आती है ।
शामें एकान्त मुझे छोड़ जाती है, जग की बातें याद आती है ।
पथ भटकाकर लोग मिलना चाहे मुझे ।
मैं बावरा अकेला कहूँ ये ।
मैं बावरा अकेला जिऊँ रे ।।
Kavitarani1
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