मेरा आप | mera aap
मेरा आप
जब - जब मैं अकेले में अपने आप में होता हूँ,
तो मैं बस अपने आप में होता हूँ ।
और वो आप मुझे दुनिया का श्रेष्ट मानव बना देता है,
और मैं उस पल की कल्पना में खो जाता हूँ ।
ये सब बस सोंचने से शुरू होता है,
और खत्म उत्साह के नये संचार पर होता है ।
कई बार मुझे लगता आया है ये सब सच होगा,
रवि जो एक तारा है वो सितारा बनेगा ।
आखिर ये कल्पनाएं ही है जो मुझे अलग रखे हुए है,
और मुझे कुछ करने की प्रेरणा देती है ।
वरना तो ये समाज, ये लोग मुझे रोकते है,
ये चाहते हैं में इनसे नीचे रहूँ बस इनमें रहूँ ।
मैं इन्हें छोड़ना नहीं चाहता,
पर मैं इन्हें ऐसे रहने भी नही देना चाहता ।
मैं और मेरा संसार शानदार है,
वहाँ प्रेम है, विश्वास है, समझ है आनंद है ।
और मेरा आनंद मेरे और मेरे संसार में है,
इन सब की खुशी और सामर्थ्य में है ।
पर ना ये मुझे कुछ मानते है ना करने देते है ।
और तो और ये मुझे रोकते है भटकाते है ।
पर जब में अकेले में होता हूँ,
अपने आप में होता हूँ,
तो इन सबसे परे होता हूँ,
और अपने आप में होता हूँ ।
वो श्रेष्ट है,
महान है,
अद्भूत है,
निस्वार्थ है।
मजेदार हैं,
मनमोहन है,
वैभवशाली है,
वो मैं हूँ और मेरा आप है ।।
Kavitarani1
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