समय बदल गया | Samay badal gya hai


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 समय बदल गया 


जो मन की पीङा हर लेते हो ।

जो तन का मेले धो देते हो ।

जो सभ्य समाज के निर्माता हो ।

जो ज्ञान प्रकाश के ज्ञाता हो ।

वो शिक्षा के पुंज खो गये हो ।

अब तो ऐसा लगता है,

वो ज्ञान कुंज खो गये हो ।।


अब तो ऐसा लगता है,

 भेष बदले भेड़िये हैं ।

भेड़ के रूप में सियार है ।

बात बड़ी-बड़ी करते हैं।

पीठ पीछे षड़यंत्र करते हैं ,

अपनी ही डिंगे हांकते है ,

कुछ पूछने पर मारते है ।।


शब्दों का मैल ना रहा ।

गुरू - शिष्य का कोई खैल ना रहा ।

अब एक रोटी कमाने वाला है ।

ज्ञान पिपाषु, मन का मारा है ।

ना शिष्य में शिष्टता को पाता हूँ ।

ना गुरू में गौरव देख पाता हूँ ।

ये समय का सारा खैल हुआ ।

ये बुरे वक्त का मैल हुआ ।

मैं भी अपनी ही अब करता हूँ ।

जीवन में सत्य को हरता हुँ ।

जैसे जो है वैसा करता हूँ ।।


Kavitarani1 

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