सुन मेरी सुन | Sun meri sun



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 सुन मेरी सुन 


सुन बावरी सुन,

मैं कहता हूँ इतना तुझे चुन।

कोई ओर पर मन नहीं आता,

 अब मैं क्या करूँ की मैं तुझे नहीं भाता ।

मेरी आदत खराब तुझे मान बैढता अपना ।

बातों -बातों में सुनाता सपना अपना ।

सपनें में तुम कल भी आई,

अभी जैसे ही चिढ़ी और इतराई ।

अब क्या कहूँ तेरे नखरे भारी,

कोई नहीं मेरा यह लाचारी ।

बैठ पास दुर काॅल करती,

फिलींग बताओ या हॅसी छुड़ाओ,

तुम बस चिढ़ती ।

अब क्या करे इसपे तुम ही बताओ।

छोङ सब अभी बस मेरी सुन,

सुन, मेरी सुन ।

राहें मुश्किल है, बस मेरी राह तु चुन।

हो रही सुबह या शाम,

चढ़ रहा दिन जिन्दगी बन रही आम,

ना दाम कर,

ना कर मोल,

मेरे सच्चे अहसास को चुन,

मेरी सुन, मेरी सुन  ।


Kavitarani1 

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