दुहाई | Duhai
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दुहाई
हे कृष्ण! तुम्हें राधा जी की,
हे राम! तुम्हें सीता जी की,
हे भोले! तुम्हें पार्वती जी की,
सब प्रेम जनो को प्रेमिकाओं की,
हर प्रियतम को प्रियतमा की,
है दुहाई, है दुहाई।
है दुहाई;
कि क्यूँ बहारें वो समेटे रखे,
अपने आनन्द को छुपाये रखे।
कि अपने मोह को बताया नहीं,
है दुहाई, कि मैं कैसे कहूँ,
कैसे बयां करूँ अपनी मन की चाह,
कैस बयां करूँ अपनी विलास ।
अभिव्यक्ति का कच्चा मैं ।
अपने मन से बच्चा मैं ।
अपने आप में सिमटा हूँ ।
शब्दों में अटका हूँ ।
ढूंढ रहा प्रेम की व्याख्या,
प्रेम की परिभाषा,
रास की परिभाषा,
कोई बताओ मुझे,
अपनों की बात नहीं,
प्रेम की दुहाई है,
है दुहाई ।।
Kavitarani1
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