खाई बड़ी | khai badi
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खाई बड़ी
खुद की जिद के आगे खुद की हार,
खुद ही समझ बात खुद ही करना चाहूँ पार,
या खाई बड़ी भारी है,
होई नी अबार तक पार ।।
कोशिशां करता बारंबार,
होसलां खोता हर बार,
हर बार हारता खुद से ही,
खुद ही बनाता होसलां अपार ।।
भगवान भरोसे चल रही,
चल रही जीवन पतवार,
या खाईं बड़ी भारी है,
होती नी पार, होई नी पार ।।
दुजा किनारा साफ समतल लगे,
लगता आनन्द होगा अपार,
सोंच मजे की ही बात,
हर बार करता कोशिशां बारबार ।।
हारता खुद ही,
खुद खड़ा हर बार,
या खाई बड़ी चौड़ी है,
जदी होती नी पार,
या खाई अबार तक,
होई नी पार ।।
Kavitarani1
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