सफर जिन्दगी का चल रहा है / safar zindagi ka chal rha hai
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यहाँ एक पथिक अपने मन के हालात को बता रहा है कि कैसे उसका जीवन का सफर चल रहा है। यहाँ अपने सफर में मिलने वाली कठिनाईयों और अपने अनुभव को भी कवि ने साँझा किया है।
सफर जिन्दगी का चल रहा है
सफर जिन्दगी का कट रहा है।
लोगों से मिलते हुए दिन - दिन कट रहा है ।
काम का बोझ नही, काम ही बोझ हो रहा है।
जिन्दगी सवारनी है और मूर्खों में दिन बट रहा है ।
सफ़र जिन्दगी का चल रहा है।।
क्या कहें उन्हें जो खुब भटके हुए हैं ।
और उन्हे जो अहम् में यहीं अटके हुए हैं ।
वो जो खुद से ज्यादा किसी को कुछ नहीं समझते ।
उन मूर्खों और लोमडियों में दिन कट रहा है ।
सफ़र जिन्दगी का चल रहा है।।
सफर जिन्दगी का बुरा भी नहीं ।
कुछ लोग मिल रहे अच्छे बहुत अच्छे भी ।
पर काम समझ कर ज्ञान से हट रहें हैं ।
किताबों के आगे दिन गुजर रहे और कट रहे है ।
और सफ़र जिन्दगी का चल रहा है।।
समझ जिन्हे अभी आनी बाकि है ।
समझदारी का तिलक लगा शैखी मार रहे हैं ।
कुछ अपनी होंशियारी मैं मर रहे हैं ।
कुछ दुसरों का समय खा रहें हैं ।
और सफ़र जिन्दगी का चल रहा है।।
छोड़ सबको अपने हाल पर मैं ।
अपने रास्ते पर चल रहा हूँ ।
सफर जिन्दगी का जो दे रहा है ।
वो खुशी हो या गम ले रहा हूँ ।
ऐसे ही सफर जिन्दगी का कट रहा है ।
मैं अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा हूँ ।
सफ़र जिन्दगी का चल रहा है।।
Kavitarani1
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