ऐसे जिया जाये ना, Aise jiya jaye na



 

ऐसे जिया जाये ना 


 ऐसे जिया जाये ना पिया ।

ऐसे गम पिया जाये ना ।

अक्सर आते पास मन के,

लोग खेल के जाते है ।

मन भरने तक बात करते,

मन को छिड़क छाते है ।

खैल अक्सर मुझको भाता,

हारता मैं मुस्काता हूँ । 

बैठ अकेले अक्सर फिर,

रोता हूँ गुनगुनाता हूँ ।।

ऐसे जिया जाये ना पिया ।

गम पिया जाये ना । 

सबसे करता ना मन की बातें, 

बातें होती आम बातें । 

मन लग जाता वहीं पास ।

मन लग जाना वो चाहता,

बार-बार भाव जो खाता ।

खाता मन हिलोरे प्रेम की,

प्रेम तरसाता जाता है ।।

ऐसे जिया जाये ना पिया ।

गम जिया जाये ना ।।

रोज दिया जलाता हूँ मैं, 

अपने प्रेम को गाता हूँ मैं । 

गाती है प्यास पुरानी,

मन में बसी वो सुहानी,

सुहानी सुरत बन आती कोई, 

रूठ पल - पल डराती कोई ।।

ऐसे डर-डर जिया जाये ना पिया ।

ऐसे गम पिया जाये ना ।

आती मन भावन कोई पास तो,

मन उसे चाहता नहीं जो ।

दुर करता समझाता है ।

मन दुखे ना किसी का,

और अकेला मैं ही रहता ।।

ऐसे जिया जाये ना पिया । 

ऐसे गम पिया जाये ना ।।

दुर खड़े कोई मुस्काई,

पल भर मेरे मन पर छाई ।

पास आई तो दूर गया मैं, 

मुश्किल में फिर पड़ गया मैं । 

पल भर का सुख भारी होता,

ऐसे मेरा मन नही सोता ।।

ऐसे भार लेकर जिया जाये ना पिया ।

ऐसे गम पिया जाये ना ।।

फिर अकेला बैठा हूँ मैं, 

अपनी धुन में लेटा हूँ मैं । 

सोच रहा हूँ कैसे जिऊँ, 

गम अकेले ही कैसे पिऊँ,

कैसे भार बोऊँ मैं, 

कैसे ये सार जिऊँ मैं ।।

ऐसे जिया जाये ना पिया । 

गम पिया जाये ना ।।


Kavitarani1 

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