दरखास्त / Darkhast (love poem)



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दरखास्त 


अब दरखास्त है मेरी रब से,

कि जिन्दगी में ऐसा भी कोई आये,

जो बस मेरे लिये हो,

और मैं उसके लिये ।


जिसका सारा समय मेरे लिये हो,

और मेरा समय उसके लिये, 

मेरी शुभ सुबह उसी से हो,

और मेरी शुभ रात्रि भी उसी से ।


उसका चेहरा मेरे सामने रहे,

और मेरा चेहरा उसके दिल में । 

उसके काज़ल से मैं चिपका रहूँ, 

और मेरी मुस्कान से वो ।


अब प्रार्थना है ईश्वर से;

कि मेरी बाहों में कोई आये,

सुकुन उसके छुने से हो,

और राहत उसके पास होने से ।


जो बस मेरे लिये सजे,

और मेरी तारीफें रहे उसके लिये,

जो बस मेरे लिये व्यस्त रहे,

और मैं उसे देख के मस्त रहूँ ।


जो मेरे लिए दिन की छांव बने,

और रात की गर्मी,

जो मेरे लिये जीये,

और मैं उसी के लिये ।


दरखास्त है ईश्वर से कि;

कोई सच्चे दिल से चाहने वाली मिले,

प्रार्थना है ईश्वर से कि;

काश कोई दिल से चाहने वाली मिले ।।


Kavitarani1 

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