होंसले कमजोर / Honsle kamjor
रोज की भागदौङ करते-करते मन से कई बार आवाज आती है कि आखिर कब तक मुझे ये मेहनत करनी होगी। जब होंसले हारने लगते हैं तभी हमें साहस देने वाले की जरुरत होती है।
होंसले कमजोर
असमंझस सार, हार बैठ जाता हूँ रोज ।
सुबह से दौड़ा भागा, अभागा पाता हूँ रोज ।।
कमसमकस की जिन्दगी में अक्सर यही होता आया ।
असमंझस में हमेशा कुछ होंसला हारता आया ।।
कभी लोगों का हुजुम टकराता भड़काता है ।
कभी खुद का बैरी बन मन पिट जाता है ।।
एकांत का क्लान्त बन रोश सिर चढ़ता रोज ।
अपने खास दोस्त की खोज करता रहता मैं रोज ।।
अटकलें रोज लगाई जाती मेरी खुशियों की ।
भटकतें रोज अपनी ही जिन्दगी में लाते रोश ।।
घबराहट होंसले तोड़ती कभी-कभी तोड़ती जिद ।
आगे बड़ने में रूकावटें मेरी एकान्त में लड़ने की जिद ।।
असमंझस रोज शाम करता भटकाव मेरा ।
सुबह से शाम तक योजनाओं का रहता बखेरा ।
शामें रूकसत जो योजनायें मेरी असफल रोज ।
रोश में करता मैं खुद की ही हरदम खोज ।।
होंसले कमजोर सपने दूर है अभी मेरे ।
आगे बढ़ने के इरादे कमजोर लग रहे मेरे ।।
हार नहीं मानूगां चल रहा सोंच यही मध्यम मैं ।
होंसले बटोर बढ़ रहा हूँ भरकर दम मैं ।।
Kavitarani1
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