कब / Kab
कब
सावन बिते सुखे सारे ।
शीत बिती रिती मेरी ।
ग्रीष्म को ठण्डक नहीं ।
त्यौहारों में रंग नहीं ।
कैसी ये जिन्दगी है ।
कैसी ये कट रही ।
कोई रंग घोले आके ।
कब से बैठा मैं नीरस ।
खोज रहा कलियाँ मैं ।
कोई नहीं जहाँ रस खाली सारा ।
सपने लगते आधे से ।
साधा रहता खुद मैं ।
आधा रहता खुद मैं ।
बीत रही छड़ियाँ सारी ।
सारा यौवन बीता ।
सवाल रहे रीते सारे ।
मैं सुनता रीता सब ।
कब से नीरस एकान्त अब ।
सोंच रहा कब होगी ।
होली रंग भरी मेरी ।।
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