कर लो मनमानी, kar lo manmani
Kar lo manmani - see and listen poem here
कर लो मनमानी
कर लो मनमानी; कौन रोकता है ?
होता है अपना वही तो कुछ सोचता है ।
कहता है दिल की, बातें हिल-मिल की ।
रूठे तो ही मनाने की सोचता है ।
बेवजह भाव खाये तो कौन रोकता है ।
अपना भी सेल्फ रेस्पेक्ट अब टोकता है ।।
हाँ कब तक मानता रहूँ ।
बिन मतलब ताकता रहूँ ।
ना चाहिए था ना चाहिए कुछ ज्यादा ।
पर बातें हो सच्ची और पीठ पिछे झूठ,
मन ऐसे में हारता है ।।
नहीं आता मेरे समझ,
मेरी बातें लगती अलग,
तो जाओ रहो अपने हिसाब से,
कर लो मन मानी कौन रोकता है ।।
हम तो साफ दिल की कहेंगे,
जो मन करे वो ही करेंगे,
कोई आह भरने की उम्र नहीं,
अब किसी की आह क्यों भरेंगे ।।
जैसे-जैसे दिल दुखता गया ।
वैसे-वैसे मन भरता गया ।
भरा मन क्या और भरेगा ।
तेरे नखरे को क्या मन हरेगा ।।
अब जाओ कर लो जो ठानी; कौन कुछ कहेगा ?
कर लो मनमानी कौन रोकेगा ।
कर लो मन की कौन रोकता है ।
अब अपना मन ज्यादा नहीं सोंचता है।।
Kavitarani1
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