कौन मेरा तेरे सिवा, kon nera tere siva


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कौन मेरा तेरे सिवा 


कहने को लोग कई होते है सफर में, 

पर सबसे बातें करने को मन कहाँ ।

एक ढोर से खिंचा जाता है सबको, 

इसमें किसी का बस होता कहाँ । 

लग जाये जिससे बस उसे ही कहनी,

भले बातें मन की मन में रहनी है ।

एक बार को जिससे जुड़ता है,

फिर कहाँ ये मन लगता है ।।


एक दिल, एक चाह, एक जिन्दगी है,

मन की भी राह एक ही तो होती है ।

चला जो राह किसी की ओर ये,

कहाँ फिर किसी की सुनता है । 

कहने लगा बातें अपनी तुझसे मैं,

अब और कहाँ कोई भाता है ।

खिंचा चला गया पास तेरे जो,

अब करे दूर, पर कहाँ ये दूर जाता है । 

ऐसे ही कोई पसंद नहीं आता सफर में, 

कुछ तो गुण मिलते है ।।

 

प्यार भले ना हुआ हो कहने में, 

पर मन में अपना सा ही तो आता है । 

लड़ता उसी से है कोई जिसे अपना मानता है,

झूकता उसी के लिये कोई जिसे खुद से ज्यादा मानता है ।

जानता है मन कईयों को कहने को,

पर कौन मेरा सिवा तेरे तु ही बता ।

इतना तो जाना है मुझे तुमने,

बता "कौन मेरा तेरे सिवा।"


Kavitarani1 

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