मैं / main


Main - click here to see video

एक राहगीर को अपनी मंजिल पाने में कई समस्याओं से लङना पङता है, और इसमें सबसे बङी समस्या स्वयं से जीतने की कोशिशों की होती है।

मैं 


दर बदर भटकता हूँ, 

ना जाने कब मंजिल मिलेगी ।

अपने सा खोजता हूँ, 

ना जाने, कब चाहत मिलेगी ।

सब्र का फल पसंद नहीं, 

ना जाने कब सब्र मिटेगी ।

आज यहाँ - कल वहाँ, 

हर वक्त जिन्दगी की सोंच कहीं, 

कब जिन्दगी की रात कटेगी,

जाने कब प्यास मिटेगी ।।


फिर बुलावा आया है, 

नई जगह ने याद किता है,

फिर नजदीक काम  पाकर,

अजनबी से कुछ नहीं मिला है, 

ना जाने कब ये प्यास मिटेगी,

जाने कब दिल की बात चलेगी ।

दर बदल रहा हूँ, 

जीने की कोशिश कर रहा हूँ ।

मैं जी रहा हूँ ।।


Kavitarani1 

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