मेरी सुबह खोई | meri subah khoi hui hai
मेरी सुबह खोई
भौर हो गई, चिड़ियाँ चहक रही ।
सारे तारे गुम हुए, रोशनी मुस्कुराई ।
हवायें शीतल है, ताजगी सब और है छाई ।
मेरे मन की उदासी क्यों रह गई ।
कहाँ मेरी ताजगी है खोई ।
मेरी सुबह क्यों नहीं हुई ।।
था अँधेरा तब से जागा हूँ ।
मैं अभी आधा जागा, आधा सोया हूँ ।
आधी नींद और सपने लेकर ।
अभी भी खुशहाली की खोज में हूँ ।
कहाँ मेरी सुबह है सोई ।
क्यों ना मेरी सुबह होई ।।
साल बीत गये, जमाने बीते ।
रोज-रोज कर-कर काम दिन बीते ।
उम्र बीतीं, बचपन बीता, यौवन चरम पर है ।
जो देखे खिंचा आये, लगता तरोताजा है ।
फिर क्यूँ उदासी छाई, क्यों लगता है ।
मेरी सुबह नहीं होई ।।
होने दो सुबह मेरी, शाम तो होनी ही है ।
खुश रहने दो मुझे, उदास तो होना ही है ।
जैसे प्रकृति ले रही, अंगडाई मुझे भी लेने दो ।
मेरे जीवन पर छाया अँधेरा अब घटने दो ।
विनति मेरे प्रभू आपसे मन से ।
मेरी सुबह अब होने दो ।।
Kavitarani1
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