तुम और मैं, Tum aor main


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तुम और मैं 


मैं नासमझ बहुत, तुम होशियार बहुत । 

मैं नादान बहुत, तुम समझदार बहुत ।।


तुम रूपवान बहुत, मैं औझा हूँ । 

तुम नव यौवन में बहुत, मैं बौझा हूँ ।।


तुम भौर सुहानी, मैं धूप दिन की हूँ,

तुम संध्या रानी, मैं चाँदनी रात सा हूँ ।।


मैं जलता दीपक, तुम बाती नई हो ।

मैं फुल कल का, तुम कलि नई हो ।।


मैं बहता दरिया, तुम निर्झर हो ।

मैं सागर अपार, तुम तड़ाग मनोरम हो ।।


तुम किरण शरद ऋतु की, मैं धूप ग्रीष्म की हूँ । 

तुम शीतल पवन, मैं लहर मनमोहक हूँ ।।


तुम नव कौयल, मैं पत्ता डाल का हूँ ।

तुम कोयल मधुर, मैं कौवा काल का हूँ ।।


मैं अनपढ़ जग, तुम गुणवान जन हो ।

मैं अनजान मन, तुम सरस मन हो ।।


मैं पथिक भ्रमित, तुम गीत मधुर हो ।

मैं छाँव कम, तुम पावन धम्म हो ।।


तुम अन्तर्यामी बहुत, मैं अबोध बहुत हूँ । 

तुम सहज बहुत, मैं उलझता बहुत हूँ ।।


तुम सार गर्भित तो, मैं पल्लवन हूँ ।

तुम टीकाकार तो, मैं मूल कर्म हूँ ।।


मैं राही मन का, तुम ज्ञानी जन हो ।

मैं पथ भटका जो, तुम ठोर मन हो ।।


मैं अधुरा एकान्त, तुम पूर्ण पाठ हो ।

मैं मन का मारा, तुम पूर्ण राग हो ।।


तुम सकल राही जो, मैं निर्गुण रागी हूँ ।

तुम सहज पार्थ, मैं अगुण पथिक हूँ ।।


Kavitarani1 

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