वृक्ष बन जाऊँ मैं / Vriksh ban jau main
वृक्ष बन जाऊँ मैं
मन करता है एक वृक्ष बन जाऊँ मैं ।
तने से सख्त बहुत और ऊपर से हरा -भरा रहूँ मैं ।
फल दूँ निस्वार्थ सबको और दूँ छाव मैं ।
हवा दूँ शुद्ध सबको और दूँ शीतलता मैं ।
मन करता है वृक्ष बन जाऊँ मैं ।
कोई फेंके पत्थर चोट खाऊँ मैं ।
कोई खिचें डाली झुला बन जाऊँ मैं ।
कोई नोचे पत्ते, नये पत्ते ऊगाऊँ मैं ।
जो चाहे कोई कुछ, सब दे पाऊँ मैं ।
मन का मौजी वृक्ष बन जाऊँ मैं ।
आँसु मेरे गोद बने पकवान में सज जाऊँ मैं ।
लहू मेरा जो बहे उद्योगों को चमकाऊँ मैं ।
मन ही मन सब सह लूँ शब्द ना कहूँ मैं ।
हवा में झूमता हरियाली का गीत गाऊँ मैं ।
धूप से पथिक बचाऊँ,
बादलों से लड़ जाऊगाँ मैं ।
अंधड़़ को रोकू शीत लहर लांऊ मैं ।
पक्षियों का घर बनूं बंदरो का मैदान बनूं मैं ।
हरे पत्तों से भी भोजन बनूं,
बालों से ईधंन बन जाऊँ मैं ।
घर का साज सामान बनूं,
मर के भी काम आऊँ मैं ।
जीवन का आनंद दूँ सबको,
ये काया तर जाऊँ मैं ।
जितना काम आ सकूँ इस जग के काम आऊँ मैं ।
स्थिर रख काया को मन को स्थिर कर जाऊँ मैं ।
बहुत बड़ा हो गया हूँ मैं ।
मन करता है एक वृक्ष बन जाऊँ मैं ।
मन करता है,
वृक्ष विशाल बन जाऊँ मैं ।।
Kavitarani1
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