ये मेरी मंजिल नहीं / ye meri manjil nahi
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हमें कई सारी सफलताऐं मिलती है, पर जब तक मन को संतुष्ट कर दे वैसी सफलता ना मिले, तब तक मन से यही आवाज आती है, ये मेरी मंजिल नहीं।
ये मेरी मंजिल नहीं
हँसता हूँ पाकर इसे,
जेब भी भरी लगती है,
प्रशंसा कानों में पड़ती,
दुनियाँ देख इसे हँसती है ।
माना की मुकाम है,
खुशमिजाज सपना है,
पर मेरी ख़्वाहिशों को पूरा करे,
ये वो मेरी मंजिल नहीं ।।
रोज सुबह उठता हूँ,
एक दौड़ नई चुनता हूँ,
ख्वाहिशें लगती अधूरी,
तो लगता ये मेरी मंजिल नहीं ।
एक संतोष कहीं खोया है,
एक तृप्ति मन की गायब है,
एक तलाश अभी जारी है,
एक चीर परिचित मुस्कान बाकि है ।
उस मुस्कान को पाना है,
उस ओहदे पर जाना है,
खुश होकर आना है,
मस्त होकर जीना है ।
वो सपनों का महल दूर है,
वो चाहत का नूर दूर है,
वो लोगो का ध्यान दूर है,
वो मेरी बातें दूर है ।
मिला है बहुत सफर में मेरे,
पर जो चाहिए था मुझें,
और जो मन को चाहिए मेरे,
वो मुकाम अभी मिला नहीं,
और लगता है ये मेरी मंजिल नहीं ।।
Kavitarani1
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