भ्रमित सुबह है / Bhramit subah
भ्रमित सुबह है
भरी धुप में, दोपहर काटी है ।
साॅवन की फुहारों के साथ ही नहीं,
आँधियों में राते गुजारी है ।
शीतल हवा को सुना है समझा है,
मैंने कड़ाके की शीत में सुबह गुजारी है ।
अब बदला मौसम है ।
सुहानी शाम है और शांत सुबह है ।
कैसे संभालू इन सबको,
मन में सवाल है ।
बातें बहुत, काम बहुत है ।
जीवन के उतार - चढाव के अनुभव बहुत है ।
इसी सब के साथ सोंच रहा हूँ,
ये सुबह कैसे गुजारू ।
पढ़ने का मन नहीं,
आगे बढ़ने का होंसला नहीं,
रूकने का मन नहीं,
काम दिन का और कुछ नहीं,
कैसे, क्या करूं सवाल वही,
इस सुबह भी वही ।
मेरी सुबह भ्रमित है ।।
Kavitarani1
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