किसे पड़ी है / kise padi hai
तेरी किसे पड़ी है
क्या कहे किसी को ?
क्या सलाह दें ?
ऐसे भी कौन किसकीसुनता यहाँ ?
जो कहता कुछ उसे कहने दे ।
सबको बस यहाँ अपनी पङी है ।
और अपनी अभी कटी पङी है ।
जेब मेरी, और नगदी सड़ी है ,
जैसे तेरी सोंच सड़ी है ।
कहना क्या सब समझते है ।
कहना क्यों सब समझते है ।
समझ ना आये तो हँसते है,
फसते है, वो जो कहते कभी हम फसते नहीं,
यही बात मुझे अड़ी है,
कहना क्या मुझे खुद की पड़ी है,
सब जानते है दुसरों की किसे पडी है ।
जिसे आना है आयेगा,
गाना है गायेगा,
रोके कितना ही किसी को,
जिसे भाड़ में जाना है वो जायेगा ।
जाने वाले को मैं भी रोकता नहीं ।
अब फालतु की बातों से खुद को टोकता नहीं ।
जिसे टोकता हूँ उसे कहता हूँ ।
भाई समझ मेरे जिन्दगी बड़ी है ।
तुझे दुसरों की पड़ी है ।
और मुझे अपनी पड़ी है ।।
Kavitarani1
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