फिर से / Phir se


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कुछ पल ठहर कर जब राहगीर वापस अपनी मंजिल के लिए ध्यान लगाना चाहता है तो उसके मन से आवाज आती है, कि चाहे कैसा ही मौसम हो मुझे फिर से अपनी मंजिल के लिए उङान भरनी है।

फिर से


फिर से हवा में नमी है,

हवायें तेज है, 

आसमान बादलों से ढका है,

फिर से उमंगे है, 

एक नया जोश है,

सनसनाहट है सासों में, 

ताजगी है,

मौसम खुशमिजाज है ।


मैं बन परिंदा उड़ना चाहूँ, 

देख फिजायें महकना चाहूँ, 

दूर तक एक छोर खोजूँ, 

मैं अपनी धून में गाना चाहूँ, 

आजाद हूँ आजाद रहना चाहूँ ।


फिर से वो पुरानी यादें हैं, 

दिल में नयी उमंगे है, 

रूकावटें है कई सारी,

पर मस्त उड़ने की चाहत है, 

राहत है कुछ दिल में, 

कुछ मेरी चाहत है ।।


Kavitarani1 

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