सांझ सत्य / Sanjh satya
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सांझ सत्य
एक सांझ सच,
देख मन रत ।
सत्य श्याम रंग सांझ का ।
मैं जत कर - कर प्रयत्न अब थक रहा ।
जग झूठ,
झूठ सब - सब करते है दिखावा ।
एक मन प्यास,
करते रास जन जग करे बावरा ।
सुबह प्यारी,
धूप न्यारी,
धूप जलाये ग्रीष्म ही ।
शीत याद आये,
बरखा सताये,
सताये अति जब हो रही ।
ढलती काया,
और माया,
दिखाती सत्य सांवरी ।
मन की बात,
तन की प्यास,
बस रही मन ही ।
एक सांझ सच,
देख मन रत,
सत्य श्याम रंग सांझ का ।।
Kavitarani1
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