तट पर / Tat par


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तट पर 


मैं रत हूँ अपनी धुन में, 

बुन रहा अपना घोंसला, 

गत है आसमान छुने की, 

बना रहा अपना होंसला ।


मैं क्षितिज निहारता रहता,

कहता कुछ - कुछ करता,

अपनी उमंग बनाता मिटाता,

मैं चलता अपनी धुन में गाता ।


आ चुका मध्य में, 

बहता दरिया है तेज,

देख रहा तट को छोर से,

हूँ बैठा अब तट पर मैं ।


अब बह जाना है, 

सब यहीं रह जाना है, 

कहना है इस वेग से, 

पार करना है दरिया ये ।


शौर बहुत इस तट पर,

है बहुत बैचेनी भी,

कहता कुछ - कुछ करता हूँ, 

संशय मैं बैठा हूँ ।


अब सार सब छोड़ा है, 

हर अपने को परखा है, 

मुख पर कुछ - कुछ मन में, 

अब देख रहा तट - तट पर मैं ।।


Kavitarani1 

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