असहाय | Asahay
असहाय
हाय विपदा भारी, मन की हारी ।
हाय कहाँ छूपाऊँ, मन का मारा बेसहारा ।
खुद लिखूँ मिटाता जाऊँ, असहाय मैं ।
हाँ लगता है अब; असहाय मैं ।।
बोझ पहले भी था, मन से तड़प भी था ।
पनपा भी था मैं, रेगिस्तान में ।
हाँ भरे कोहरे मे भी चला था मैं ।
पर बोझ बदले है उम्र बदली है ।
पहले जोश भरा था मन में मेरे ।
अब लग रहा असहाय मैं ।।
डर है कल कौन अपनायेगा ।
अँधेरे में गये रवि को कौन ला पायेगा ।
कौन कहेगा फिर ये सवेरा है ।
चलना दिन भर है अभी दुपहर सा जलना है ।
अभी बाकि है दिन तेरे, और हौंसले के बिन है ।
हाँ शायद तुझे लग रहा मैं असहाय ।
हाँ मैं असहाय सहायता मांग रहा ।।
कोई आये ऊर्जा दे, जकड़ा जा रहा राह पकड़ दे ।
दे आशा कि किरण की जल जाऊँ मैं ।
भरा पड़ा हूँ ज्वाला से बस फिर से सुलग जाऊँ मैं ।
हाँ मुझे जरूरत है, किसी अपने की जरूरत है ।
हाय कोई राह दिखा दे, मुझे गले लगा ले ।।
ये विपदा भारी, मन की हार भी ।
जीने के सारे रास्ते है ।
मुझे आगे बढ़ने से रोके है ।
हाय कैसी फैली मन पर महामारी ।
लगता असहाय, प्रहार हुआ भारी ।।
Kavitarani1
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