अस्तांचल लुभाये | Astanchal lubhaye
अस्तांचल लुभाये
कोरे नैना ख्वाब सजाये ।
एकान्त मन तुझे बुलाये ।
पूर्वांचल से चला रवि ।
अस्तांचल में मन लुभाये ।।
कोई कागज़ शब्द सजाये ।
मन का बोझ उतरा जाये ।
शीत हवा सिहरन बढ़ाये ।
बैठा एकान्त मुझे अस्तांचल लुभाये ।।
ज्ञान वेदी सास पढ़ी ।
पूर्वांचल से याद जुड़ी ।
सपनों में लक्ष्य आये ।
शांत मन को अस्तांचल लुभाये ।।
दिन की दौड़ भाग ।
चरम पर अपनी आग ।
सुर्योदय सी आभा दिखाये ।
जब अस्तांचल रवि लुभाये ।।
दिन, पहर, साल गुजरे ।
देख दृश्य कई दृश्य गुजरे ।
कई नये मित्र दिन में मिल जाये ।
शाम को एकान्त अस्तांचल लुभाये ।।
अधुरे लब्ज, अधुरे शब्द ।
अधुरा ज्ञान मुझे झुकाये ।
अस्थिर दुनिया-जीवन को ।
दिखता समझाये, अस्तांचल लुभाये ।।
Kavitarani1
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