दुविधा में | Duvidha mein



दुविधा में 


पहले से असुविधा में, 

मैं जाने कैसे काट रहा अपने दिन ।

फिर आये दिन की परेशानियाँ, 

आये दिन समझता खुद को हीन ।।


हॅस के गुजारता दिन,

और मन में रहते कहर दुर दिन ।

फिर भी मैं दीन हीन कोशिशों से,

आज भी गिन रहा दुविधा के दिन ।।


पकड़ हाथ अपनों का चलूँ,

साथ लेकर सबको मैं बढूँ ।

सबकी बात करते ,उठते और बढ़ते, 

मैं कभी उढूँ कभी गिर पढूँ ।।


आज इसमें उलझा,

मैं कल था उसमें जा उलझा ।

यहीं सोंच लेता कभी-कभी कि,

मैं था कब सुलझा ।।


एक उम्र की विधा में, 

आशाओं की ओर सुविधाओं में ।

जाता हूँ लौट आता हूँ, 

लगता है मैं हूँ दुविधा में  ।।


Kavitarani1 

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