हमसफ़र की कमी | Humsafar ki kami
हमसफ़र की कमी
कोई तो हमसफ़र हो इस सफर में,
जिंदगी बोझ सी लगने लगी है ।
आशाओं की रोशनी बने पथ में,
होंसलों की उड़ान थमनें लगी है ।।
यूँ तो जी भर जीता हूँ मैं अपने आज में,
कल की फिक्र माथे पर लकीर सी सजने लगी है ।।
कोई तो आके थाम ले बाँह ये,
कदमों की चाल बिगड़ने लगी है ।
मंजिल की ढाल बनें कोई अब,
राह चढ़ाव वाली लगने लगी है ।
यूँ तो चल रहा हूँ मैं अपनी धुन में,
मेरी लय जाने क्यों बिगड़ने लगी है ।।
सपना बहुत बनने का देखा था ,
दुरी आधी ही पार हुई है ।
धुंधलापन नींदो पर भी छाने लगा है,
कोहरे को दूर करे वो पवन खोई है ।
यूँ तो बढ़ जा रहा हूँ आगे मैं,
रास्तों का भ्रम हो रहा है ।।
कोई आये दम भरने फिर,
अभी जिन्दगी काफी पड़ी है ।
हौंसलो को उड़ान दे सके फिर ,
वो बंदंगी कहीं खोई हुई है ।
यूँ तो जी भर के मेहनत करता हूँ मैं ।
पर सपने साथ जीये उस हमसफ़र की कमी है ।।
Kavitarani1
176

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें