खुश रह | Khush rah
खुश रह
खुश ही था दिन भर का,
अपना काम कर रहा था मन से मैं ।
सोंचा चलो किसी का भला सोंचे,
अपने दिये काम से ज्यादा कर ले ।
पर जानता था मुक्त की चीज की कदर कहाँ,
कौन पुछे भलाई को यहाँ ।
वही हुआ समझने की नौबत रही,
बात खुद पर ही आती रही ।
क्यों ज्यादा सोंच काम करता हूँ,
जिन्हें जरूरत नहीं उनकी सोचता हूँ ।
क्यों मैं अपनी शक्ति खो रहा,
दुखी मन लेकर क्यों दिन खो रहा ।
कदर पैसों वालों की है जग में,
मेहनत बिन पैसे करना फिजुल है ।
जमाना कलयुग का है रवि,
क्यों सतयुग सा मन लेके जीता है ।
खुश रह बस अपने हिस्सा का लेकर,
मान पर बस अपनी सुनकर ।
कठोर ना बन सके तो छोड़ दे,
अपना काम कर, कुछ समय पर छोड़ दे ।
उनके भाग का वो खायेंगे,
वो अपना का कर्म पायेंगे ।
तु अपना काम करना अब,
व्यर्थ धर्म पर ना पड़ना अब ।
सिख समय की काम ले,
खुश रह और रब का नाम ले ।।
Kavitarani1
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