कोई पग फेरी कर जाये | Koi pag pheri kar jaye




कोई पग फेरी कर जाये 


विरान महल पड़ा हुआ, 

उजड़े खलिहान सा ही गया ।

मेरे मन पर अब जोर नहीं, 

तन पर मन भी हावी हुआ ।

कोई राग कहे, कोई रोग कहे ।

कोई कहे ये शांत हुआ, 

कोई इसे अशांत कहे ।

मेरे मन को फिर खिला जाये ।

कोई आये पग फेरी कर जाये ।।


जो धुल चड़ी है मैदान पर,

अपने पग निशान छोड़ जाये ।

कोई आये तो महक लाये,

कुछ बीज अनोखे छोड़ जाये ।

वृक्ष बनू हरियाली होए, 

सब और फिर खुशहाली होए ।

मन करे विलाप, रोये,

आखी-आखी रात जगे ।

सुबह से बौर करे,

भौर ये बरबाद करे ।

मेरे पर काबु  कर जाये,

कोई खैले, खैल खिला जाये ।

कोई भूले भटके से सही, 

कोई पग फेरी कर जाये ।।


आराम नहीं पल भर का,

अब राम भजू, जीवन या ।

करे विनती हर रोज यूं ही,

या पड़ा रहे विरान सा ।

मेरे मन पर जाले पङ रहे अब,

खलिहान बंजर हो रहा अब ।

धूल उड़ रही, मिट्टी उड़ रही,

 सपने जीवन के हवा हुए ।

कोई पानी की फुहार बने,

फिर से मिट्टी की पकड़ बने ।

हरियाली की आस जगे,

कोई आये मन लगा जाये ।।


मैं ख्वाब सोंच रहा सारे,

होये नहीं पूरे वो सारे ।

अधूरे रह गये कुछ जो,

कुछ को पाया है कुछ पास है ।

जो मन की आस रह गई,

वो कोई पुरी कर जाये ।

कोई आये मेरे विराने में,

 चहलकदमी कर जाये ।

कोई पग फेरी कर जाये ।।


Kavitarani1 

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