मेरा भाग्य | Mera bhagya
मेरा भाग्य
कट गई रात करवटों में,
बह गये दिन सलवटों में,
बदल गई दुनिया दौड़ भाग में,
पर कुछ रह गया बदलना,
वो मेरा भाग्य ।
कल भी चाह में किसी की था,
कल भी सपने सुकून के देखता था,
होती थी बातें गाड़ी, पैसे और बगंले की,
एक साथी और खुशियों की,
बहुत कुछ सोंचा था बदल देने की,
बहुत कुछ बदला है, ये नहीं,
समाज, घर, लोग, बोली सब बदलें है,
पर एक जो रह गया बदलना बाकि,
वो मेरा भाग्य है ।।
पलको को नम कर गम छिपाये,
डायरी में लिखे लोगों से छिपाये,
मुस्कान चेहरे पर रख दुःख दुर रखा,
एकान्त में बैठ सुख का मनन किया,
सब कुछ छुट गया पिछे अपनी मातृ भूमि के साथ,
कुछ नहीं छुटा पिछे वो था,
भेरा भाग्य ।।
कट जायेंगे दिन-रात उम्र के साथ,
जैसे नदिया मिलती सागर में लहरों के साथ,
हिरे मन के भी अंतिम मुकाम तक जायेंगे,
जो घटना है छूटेगा और साथ रहेगा,
वो मेरा भाग्य ।।
Kavitarani1
76
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें